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मेरा साहित्य सफ़रनामा! (प्रतिलिपि गेस्ट ब्लॉग)

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वह सपना जो किसी ने नहीं देखा, उसकी कल्पना करने की चाहत रखता हूं। कभी मेरी इस जुस्तजू में शामिल होना हो तो मेरे मकबरे आ जाना।

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एकांत

जयतु प्रजातंत्रम् जयतु भारतम न सनातनी हूँ, न मुसलमान हूँ! मैं सरमद हूँ! #Silent LGBT Supporter نا شَناسا Οὖτις ज़टल्ली ARMY Carat ONCE "Until you make the unconscious conscious, it will direct your life and you will call it fate." - Carl Jung पंडित होइ सो बेद बषानै। मूरिष नांमदेव राम ही जानै Fatuus (मेरा खुदका चुना हुआ नाम!) मेरे बारे मे: आप मेरा Bio पढ़ मेरी कहानी पढ़ेंगे या मेरी कहानी पढ़ मेरा Bio देखेंगे, बात एक ही है। आपको शायद मेरी लेखनी उतनी प्रभावित न करे क्योंकि वह है भी नही। अति सामान्य भाषा और रोचकता या सस्पेंस के अभाव वाली कहानी लिखता हूँ। यूं तो मैं स्वयं के मामले में ऐसा मानता हूं नही पर मेरी लेखनी Post-Modernist (उत्तर आधुनिकतावाद) शैली की है। वह सभी तत्व या लक्षण मेरी लेखनी में है। हाँ सब नही है और क्योंकि मैं इस बारे में कोई एक्सपर्ट नही हूँ इसलिए पूरी पुष्टि के साथ नही कह पाऊँगा। यदि आपको मेरी कहानी पसंद आएं तो इसका अर्थ है कि आप बड़े उदारवादी और दयालु है। या आपको साहित्य की सही समझ नही, या मैने सचमे ही गलती से अच्छा लिख दिया और मुझे ही मालूम नही चला। कुछ भी हो, आपको मुझसे नियमित रूप से कहानियाँ नही मिलेगी और जो मिलेंगी वह इस दुनिया से परे की है, असामान्य है। मैं गेम खेलता हूँ Genshin Impact नाम का जिसमे मैं रैंक 59 का खिलाड़ी हूँ। 60 रैंक सबसे उच्चतम है। गेम मे मेरे 7 DPS है जो इस प्रकार है:- १) Razor (विद्युत Claymore धारी) २) Ayaka Kamisato (हिम तलवार धारी) ३) Yoimiya Naganohara (अग्नि धनुषधारी) ४) Itto Arataki (भू claymore धारी) ५) Ayato Kamisato (जल तलवारधारी) ६) Shikanoin Heizou (वायु जादूगर/मुक्केबाज़) ७) Kusanali (वन जादूगरनी) विशेष नोट: [ जैसा मेरे तख़ल्लुस से ज़ाहिर होता है, मैं एक अमनपसंद इंसान हूँ। मैं मौज-मस्ती, हँसी ठिठौली के विरुद्ध नही हूँ। आप चाहे तो मेरी प्रोफाइल पर पोस्ट मे चुटकुलों की प्रतियोगिता, मुशायरा या लेखन घोष्टि बिठा सकते है अपने दोस्तो के संग! मुझे कोई समस्या नही है। केव इतना ध्यान रखे कि आपका मज़ाक किसी धर्म, संप्रदाय, जाति, लिंग, नस्ल, विचारधारा वगैरह-वगैरह का मज़ाक न उड़ाए। वह आप अपनी ID पर कर सकते है, मेरी प्रोफाइल पर नही। उसके अलावा साफ सुधरे जोक्स चलेंगे। बाकी मेरी प्रोफाइल से उग्र विचारधारा वाले चाहे वह दक्षिणपंथी हो या वामपंथी, वह मुझसे दूर रहे। इसमे मैं और आप दोनो खुश रहेंगे। इनके अतिरिक्त यह मेले मे बिछड़े परिवार वाले भी मुझसे दूर रहे। आप इस साहित्यिक मंच को भले ही फेसबुक और व्हाट्सऐप बनाना चाहते है और यहाँ लिखने के बजाए दोस्ती करने आएं है, लेकिन मैं आपके इस बचकाने खेल मे शामिल नही होऊँगा। यह सब मेरी ID पर नही!] मेरा उद्धरण(Quote) "खौफ़ क्या है? दुनिया की निश्चितता और समाज की मिथ्या सुरक्षा पर यकीन कर लेना। और उससे आँख मूंद कर बैठ जाना।" फेसबुक पेज: https://m.facebook.com/ekaantwriter/ प्रतिलिपि कॉमिक पर मेरी कॉमिक: 👑🤴खूनी तख़्त👿☠️ और 🕛कालचक्र- मौत का खेल!🌪️😈 Kuku FM📻 पर मेरी कहानी: * ☠️खूनी तख़्त💀☠️👑

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    निर्वेद "बेईमान"
    09 सितम्बर 2023
    आपके लेखों को पढ़कर लगता है कि जबतक कुछ साल तक उस दिशा में पढ़ाई न कर लूं तब तक बोलना ही नहीं चाहिए। मुझे पता नहीं कि इस बात का वास्तविकता से कितना संबंध होगा पर आपकी रचनाओं और लेखन शैली से जो आपके व्यक्तित्व का अनुमान है वो ऐसा लगा है कि मुझे अगर बेहतर कर दिया जाए तार्किक क्षमता, अध्ययन और दिमाग में तो वो व्यक्ति आपके जैसा ही होगा कुछ। इसलिए आपका सफ़र सिर्फ़ आपका नहीं है, मुझे भी काफ़ी प्रभावित किया है आपकी रचनाओं ने, खास कर लेखों ने। मैने दर्शन बहुत तो नहीं पढ़ा पर उस तरफ़ भी मेरा जो आकर्षण हुआ वो आपकी कहानी, "एक पहेली" पढ़ने के बाद ही हुआ। बिलकुल शुरुआत में मुझे आपकी उम्र का जो अंदाजा था, वो 50-52 का था, इसलिए काफ़ी समय तक तो मैं समीक्षा और कमेंट करने में हिचकता था😅 अब आपका सवाल मुझे जितना समझ आया, उस हिसाब से संतुलन जरूरी है। अगर कहानी केवल इच्छापूर्ति कर रही है या बिलकुल ही इसके खिलाफ है, तो इन दोनों परिस्थितियों में शायद कुछ कमी है। इच्छाओं को भी अलग-अलग स्तर पर देखा जा सकता होगा, जैसे वो जिसे प्रतिलिपि थोड़ा ज्यादा प्रमोट कर रही है, या वो जो थोड़ी सभ्य प्रकार की हो। मैं ये अगली पंक्ति लिखने के लिए माफ़ी चाहूंगा अगर कोई और पाठक मेरी समीक्षा को पढ़े क्योंकि पता नहीं पर लोग काफ़ी संवेदनशील है आज कल, पर मुझे फिलहाल कोई कहावत ध्यान नहीं आ रही इसके अलावा, " बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद"। अगर हमारा माहौल वैसा नहीं रहा हो जिसका झुकाव साहित्य की तरफ़ हो तो अचानक से कोई साहित्यिक कहानी पढ़ना ऐसा लगेगा जैसे कोई चार पैर वाला जीव दो पैर पर आने की अभिलाषा रख रहा है। जबकि ये बदलाव धीरे धीरे ही आ सकते हैं क्योंकि मानव मस्तिष्क शायद इच्छापूर्ति के लिए ज्यादा विकसित है बजाय तार्किक सोचने के, मुझे ठीक आंकड़े नहीं पता पर इंसान कुछ हजार सालों से तार्किक सोच रहा है उसके पहले तो वनीय जीव की तरह इच्छापूर्ति में ही जीवन निकल जाता था, तो अभी उनका मस्तिष्क शायद उतना विकसित तार्किक क्षमता के लिए नहीं हुआ जितना कि वो इच्छपूर्ति के लिए हुआ है। एक कारण इसका भीड़ भी हो सकती है। जैसे कि किसी को साहित्य को समझने और साहित्यिक होने में सालों लग सकते हैं और ऑनलाइन मंच होने के कारण, मेरे जैसे भोंदू लोग लिखना शुरू कर देते हैं, और वे लिखते लिखते ही शायद सीखते जाते हैं लेकिन समस्या ये है कि लिखना शुरू ज्यादा लोग करते हैं पर जो सीख जाते हैं वे लिखना चालू नहीं रख पाते और जो पाठकों तक पहुंच रहा है उसमें इच्छापूर्ति वाले खंड की प्रधानता है। तो पाठकों का टेस्ट उसी तरह से विकसित भी हो रहा है जो इच्छापूर्ति ज्यादा करता हो। लेखन को सदाबहार जंगल की तरह देखें तो कुछ वनस्पतियां इसमें ऊंचाई पर उठकर साहित्य की धूप का आनंद ले रही होंगी तो वहीं कुछ धूप के अभाव और इच्छापूर्ति की सीलन में नीचे नीचे पनप रही है। मेरी नज़र में इसके बीच का स्तर ज्यादा बेहतर होगा जो इच्छापूर्ति से पूरी तरह से अलग भी न हो और केवल इच्छापूर्ति पर भी आधारित न हो तो ज्यादा पाठक इच्छापूर्ति से शुरू होकर साहित्य की ओर रुख कर पाएंगे मुझे अब भी नहीं पता कि साहित्य का कोई दायरा हो सकता होगा, बदलते समाज के साथ शायद साहित्य की परिभाषाएं भी बदलती रही होंगी। मेरी साहित्य की पृष्ठभूमि बस इतनी है कि बस दसवीं तक मैने भाषाएं पढ़ी है। और प्रतिलिपि पर लेख और कहानियों में आपका और वर्षा जी का लिखा ज्यादा प्रभावित करता रहा है, भले उसमें इच्छापूर्ति हो🫣 और कविताओं में तमस भाई और विजय जी को ज्यादा पढ़ा है प्रतिलिपि पर। इनके अलावा भी मेरे करीबी लेखक है जिनका मुझे नजरिया और लिखने का तरीका पसंद है व्यक्तिगत तौर पर। अब यहां इस पर ध्यान दीजिए कि मुझे साहित्य की बिलकुल कोई जानकारी नहीं है😂 मेरी साहित्य की पृष्ठभूमि केवल दसवीं कक्षा तक है और उसके बाद यहां प्रतिलिपि पर जो पांच से छह लेखकों ने मुझे प्रभावित किया जिनमें आपके लेख मुझे सबसे ज्यादा पसंद है। तो बस इस आधार पर मैने समीक्षा में कुछ भी लिख दिया अगर कहीं गलती हो तो माफ़ी चाहूंगा। असल में आपको पढ़ने के बाद ही मैने लेख लिखने शुरू किए थे, वर्ना पहले बस कविताएं ही लिखता था, वो भी बस तुकबंदी करने के लिए कुछ भी लिख दिया। अब मैने समीक्षा इतनी देरी से क्यों की? इसमें आपका भी हाथ है, आपके लेख में अपना नाम देखकर मुझे समझ नहीं आया कि इस पर कैसे रिएक्ट करूं🥹पर शुक्रिया🥲 दूसरा, मेरी दोनों किडनियों में पत्थर मिले तो कुछ दिन उसी के दर्द से कहीं दिमाग नहीं चल रहा था। आज बहुत दिनों बाद थोड़ा आराम हुआ🥵
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    Zunairah Ansari
    03 सितम्बर 2023
    आपका साहित्य का सफ़र पढ़ कर अच्छा लगा। ये लेख बिल्कुल भी उबाऊ नहीं था बल्कि इसे पढ़कर साहित्य के बारे में बहुत ज़्यादा तो नहीं पर काफी कुछ समझ पायी हूँ। इतनी जानकारी तो मुझे थी ही नहीं। मैं बस कहानियाँ पढ़ने की शौकीन हूँ...फिर वो लोकप्रिय है या साहित्यिक कभी कोशिश ही नहीं की जानने की।😅 अब आपका सवाल (इस इच्छापूर्ति शब्द ने दिमाग में बवाल मचा रखा था अब तक..शायद अब ये लिखने के बाद सुकून मिल जाए 😅) मुझे लगता है मैंने ज़्यादातर इच्छापूर्ति वाली ही कहानियाँ पढ़ी हैं... यहाँ प्रतिलिपि पर यही कहानियाँ ज़्यादा हैं भी और लोकप्रिय भी हैं... इसके अलावा अख़बार में हर सन्डे कहानियाँ आती थी वो मैं हमेशा पढ़ती थी (जो की अब आना बंद हो चुकी हैं 😒) उन कहानियों को मैं साहित्यिक बोल सकती हूँ शायद.. उनकी लेखनशैली काफी अलग होती थी। मैंने उनके राइटर्स पर कभी उतना गौर नहीं किया पर हाँ वो सब मशहूर लेखक की कहानियाँ होती थी। बात आती है टैलेंट की कि क्या इच्छापूर्ति कहानियाँ लिखने वालों में सच में कोई टैलेंट है.. मैं तो यही कहूँगी की इच्छापूर्ति कहानियाँ लिखने में कोई बुराई नहीं है। कहानियाँ आमतौर पर मनोरंजन के लिए होती हैं या फ़िर उनके ज़रिये पाठकों तक कोई संदेश या कोई अच्छी सीख पहुंचाई जाती है या उसमें कोई सामाजिक मुद्दा उठाकर लोगों को उसके प्रति जागरूक किया जाता है। अगर कोई लेखक इस तरह की कहानियाँ लिख रहा है तो मेरे विचार से ये भी एक टैलेंट ही है। हाँ मगर कहानी एक लेखक तैयार करता है और पाठक की खुशी के लिए या उनकी इच्छापूर्ति करने के लिए उसमें बदलाव कर देना मुझे सही नहीं लगता। एक लेखक को कहानी अपने हिसाब से ही लिखना चाहिए जैसा उसने सोच रखा है। और लोकप्रिय या इच्छापूर्ति कहानियाँ लिखना मुझे कोई सस्ता शॉर्टकट नहीं लगता। इस तरह की कहानियाँ लिखने में भी दिमाग खपता है और मेहनत भी लगती है। मैं प्रतिलिपि पर कुछ ऐसी भी कहानियों से दो चार हुई हूँ जिनका पहला पार्ट तक मुझसे पूरा नहीं पढ़ा गया पर रेटिंग और कॉमेंट देखकर मैं खुद हैरान थी कि आखिर किसी को ऐसी कहानी(वही जिसमें प्रेम के नाम पर प्रेम के सिवा सब कुछ होता है) कैसे पसंद आ सकती है..उन कहानियों में पहली बात तो कहानी ही नहीं थी..ऊपर से भर भर के गलतियां और grammar mistakes..संवाद लिखना तक नहीं आता बहुतों को..खैर मैं बस इतना कहना चाह रही थी कि इस तरह की कहानियों को मैं उन लोकप्रिय और इच्छापूर्ति वाली कहानियों में नहीं गिन रही हूँ जिनकी अभी तक मैंने बात की। जिन लेखकों को मैं पढ़ रही हूँ वो साहित्यिक कहानियाँ तो नहीं लिखते मगर फिर भी मैं उनकी रचनाओं को उम्दा कहूँगी अब वर्षा मैम को ही ले लीजिये 😁 साहित्यिक कहानियाँ शायद और ज़्यादा उम्दा में आ जायेंगी क्युंकि उस तरह की कहानियाँ लिखने में वक़्त भी लगता है और आत्मचिंतन बेहद ज़रूरी होता है। उन कहानियों में एक गंभीरता नज़र आती है जो लोकप्रिय कहानियों में नहीं दिखी मुझे। (लगता है कुछ ज़्यादा ही ज्ञान बघार दिया मैंने) 😂🙊 वैसे एक बात ज़रूर कहना चाहूँगी आपका स्कूल बेहतरीन था। हर हफ़्ते एक बुक देना पढ़ने के लिए👏। अगर वो सारी बुक्स कहानियाँ वाली होती थी तो मैंने हर बुक पूरी पढ़ी होती😂 उन लेखकों का ज़िक्र करने के लिए शुक्रिया। मैं कुछ अलग तरह की कहानियाँ पढ़ना चाह रही थी और ऐसेे में इन चार लेखकों को आपके लेख में जगह मिलना...मतलब साफ है कि ये सब भी शायद आपकी तरह बाकियों से अलग हटकर कुछ लिखते हैं । निर्वेद बेईमान की एक रचना मैं पढ़ रही थी हालांकि पूरा तो नहीं पढ़ा अभी पर वो अलग लगी और मुझे पसंद भी आई। आपका सफ़र साधारण होकर भी शानदार था। कोशिश करते रहिये एक दिन ज़रूर आप एक उम्दा लेखक बनेंगे। मेरी तरफ से बहुत शुभकामनाएं आपको सर 😌😊
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    श्रीतास "तोषी"
    07 सितम्बर 2023
    सबसे पहले तो अपने लेख में मेरे नाम को स्थान देने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद। जिस गति से मेरे पाठकों की संख्या बढ़ रही है, मुझे बिल्कुल नही लगा था कि मेरी किसी कहानी को कोई अपने कलेक्शन में भी रखेगा, कारण - मुझे अक्सर अपनी लेखनी की बुराई सुनने को मिल जाती है, ऐसे में साहित्य में रुचि रखने वाले किसी लेखक के लेख में अपना नाम देखकर मुझमें कितना उत्साह आया मैं बता नही सकती। मैं पूरा प्रयास करूंगी कि जो विश्वास आपने मेरी लेखनी में दिखाया है, उसे सार्थक कर सकूँ। आपका साहित्यिक सफर काफी रोचक है। मुझे काफी कुछ नया जानने को मिला इस ब्लॉग से। नानाजी की लाइब्रेरी होने और दादाजी द्वारा किताबें उपहार में मिलने के कारण मेरा रुझान साहित्य की ओर हुआ था पर काफी सारी बातें मुझे मालूम नही थीं। लोकप्रिय साहित्य और साहित्यिक साहित्य के मध्य का भेद अच्छे से समझ आया आज मुझे। आपको मेरी ओर अनन्त शुभकामनाएं सर।
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    निर्वेद "बेईमान"
    09 सितम्बर 2023
    आपके लेखों को पढ़कर लगता है कि जबतक कुछ साल तक उस दिशा में पढ़ाई न कर लूं तब तक बोलना ही नहीं चाहिए। मुझे पता नहीं कि इस बात का वास्तविकता से कितना संबंध होगा पर आपकी रचनाओं और लेखन शैली से जो आपके व्यक्तित्व का अनुमान है वो ऐसा लगा है कि मुझे अगर बेहतर कर दिया जाए तार्किक क्षमता, अध्ययन और दिमाग में तो वो व्यक्ति आपके जैसा ही होगा कुछ। इसलिए आपका सफ़र सिर्फ़ आपका नहीं है, मुझे भी काफ़ी प्रभावित किया है आपकी रचनाओं ने, खास कर लेखों ने। मैने दर्शन बहुत तो नहीं पढ़ा पर उस तरफ़ भी मेरा जो आकर्षण हुआ वो आपकी कहानी, "एक पहेली" पढ़ने के बाद ही हुआ। बिलकुल शुरुआत में मुझे आपकी उम्र का जो अंदाजा था, वो 50-52 का था, इसलिए काफ़ी समय तक तो मैं समीक्षा और कमेंट करने में हिचकता था😅 अब आपका सवाल मुझे जितना समझ आया, उस हिसाब से संतुलन जरूरी है। अगर कहानी केवल इच्छापूर्ति कर रही है या बिलकुल ही इसके खिलाफ है, तो इन दोनों परिस्थितियों में शायद कुछ कमी है। इच्छाओं को भी अलग-अलग स्तर पर देखा जा सकता होगा, जैसे वो जिसे प्रतिलिपि थोड़ा ज्यादा प्रमोट कर रही है, या वो जो थोड़ी सभ्य प्रकार की हो। मैं ये अगली पंक्ति लिखने के लिए माफ़ी चाहूंगा अगर कोई और पाठक मेरी समीक्षा को पढ़े क्योंकि पता नहीं पर लोग काफ़ी संवेदनशील है आज कल, पर मुझे फिलहाल कोई कहावत ध्यान नहीं आ रही इसके अलावा, " बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद"। अगर हमारा माहौल वैसा नहीं रहा हो जिसका झुकाव साहित्य की तरफ़ हो तो अचानक से कोई साहित्यिक कहानी पढ़ना ऐसा लगेगा जैसे कोई चार पैर वाला जीव दो पैर पर आने की अभिलाषा रख रहा है। जबकि ये बदलाव धीरे धीरे ही आ सकते हैं क्योंकि मानव मस्तिष्क शायद इच्छापूर्ति के लिए ज्यादा विकसित है बजाय तार्किक सोचने के, मुझे ठीक आंकड़े नहीं पता पर इंसान कुछ हजार सालों से तार्किक सोच रहा है उसके पहले तो वनीय जीव की तरह इच्छापूर्ति में ही जीवन निकल जाता था, तो अभी उनका मस्तिष्क शायद उतना विकसित तार्किक क्षमता के लिए नहीं हुआ जितना कि वो इच्छपूर्ति के लिए हुआ है। एक कारण इसका भीड़ भी हो सकती है। जैसे कि किसी को साहित्य को समझने और साहित्यिक होने में सालों लग सकते हैं और ऑनलाइन मंच होने के कारण, मेरे जैसे भोंदू लोग लिखना शुरू कर देते हैं, और वे लिखते लिखते ही शायद सीखते जाते हैं लेकिन समस्या ये है कि लिखना शुरू ज्यादा लोग करते हैं पर जो सीख जाते हैं वे लिखना चालू नहीं रख पाते और जो पाठकों तक पहुंच रहा है उसमें इच्छापूर्ति वाले खंड की प्रधानता है। तो पाठकों का टेस्ट उसी तरह से विकसित भी हो रहा है जो इच्छापूर्ति ज्यादा करता हो। लेखन को सदाबहार जंगल की तरह देखें तो कुछ वनस्पतियां इसमें ऊंचाई पर उठकर साहित्य की धूप का आनंद ले रही होंगी तो वहीं कुछ धूप के अभाव और इच्छापूर्ति की सीलन में नीचे नीचे पनप रही है। मेरी नज़र में इसके बीच का स्तर ज्यादा बेहतर होगा जो इच्छापूर्ति से पूरी तरह से अलग भी न हो और केवल इच्छापूर्ति पर भी आधारित न हो तो ज्यादा पाठक इच्छापूर्ति से शुरू होकर साहित्य की ओर रुख कर पाएंगे मुझे अब भी नहीं पता कि साहित्य का कोई दायरा हो सकता होगा, बदलते समाज के साथ शायद साहित्य की परिभाषाएं भी बदलती रही होंगी। मेरी साहित्य की पृष्ठभूमि बस इतनी है कि बस दसवीं तक मैने भाषाएं पढ़ी है। और प्रतिलिपि पर लेख और कहानियों में आपका और वर्षा जी का लिखा ज्यादा प्रभावित करता रहा है, भले उसमें इच्छापूर्ति हो🫣 और कविताओं में तमस भाई और विजय जी को ज्यादा पढ़ा है प्रतिलिपि पर। इनके अलावा भी मेरे करीबी लेखक है जिनका मुझे नजरिया और लिखने का तरीका पसंद है व्यक्तिगत तौर पर। अब यहां इस पर ध्यान दीजिए कि मुझे साहित्य की बिलकुल कोई जानकारी नहीं है😂 मेरी साहित्य की पृष्ठभूमि केवल दसवीं कक्षा तक है और उसके बाद यहां प्रतिलिपि पर जो पांच से छह लेखकों ने मुझे प्रभावित किया जिनमें आपके लेख मुझे सबसे ज्यादा पसंद है। तो बस इस आधार पर मैने समीक्षा में कुछ भी लिख दिया अगर कहीं गलती हो तो माफ़ी चाहूंगा। असल में आपको पढ़ने के बाद ही मैने लेख लिखने शुरू किए थे, वर्ना पहले बस कविताएं ही लिखता था, वो भी बस तुकबंदी करने के लिए कुछ भी लिख दिया। अब मैने समीक्षा इतनी देरी से क्यों की? इसमें आपका भी हाथ है, आपके लेख में अपना नाम देखकर मुझे समझ नहीं आया कि इस पर कैसे रिएक्ट करूं🥹पर शुक्रिया🥲 दूसरा, मेरी दोनों किडनियों में पत्थर मिले तो कुछ दिन उसी के दर्द से कहीं दिमाग नहीं चल रहा था। आज बहुत दिनों बाद थोड़ा आराम हुआ🥵
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    Zunairah Ansari
    03 सितम्बर 2023
    आपका साहित्य का सफ़र पढ़ कर अच्छा लगा। ये लेख बिल्कुल भी उबाऊ नहीं था बल्कि इसे पढ़कर साहित्य के बारे में बहुत ज़्यादा तो नहीं पर काफी कुछ समझ पायी हूँ। इतनी जानकारी तो मुझे थी ही नहीं। मैं बस कहानियाँ पढ़ने की शौकीन हूँ...फिर वो लोकप्रिय है या साहित्यिक कभी कोशिश ही नहीं की जानने की।😅 अब आपका सवाल (इस इच्छापूर्ति शब्द ने दिमाग में बवाल मचा रखा था अब तक..शायद अब ये लिखने के बाद सुकून मिल जाए 😅) मुझे लगता है मैंने ज़्यादातर इच्छापूर्ति वाली ही कहानियाँ पढ़ी हैं... यहाँ प्रतिलिपि पर यही कहानियाँ ज़्यादा हैं भी और लोकप्रिय भी हैं... इसके अलावा अख़बार में हर सन्डे कहानियाँ आती थी वो मैं हमेशा पढ़ती थी (जो की अब आना बंद हो चुकी हैं 😒) उन कहानियों को मैं साहित्यिक बोल सकती हूँ शायद.. उनकी लेखनशैली काफी अलग होती थी। मैंने उनके राइटर्स पर कभी उतना गौर नहीं किया पर हाँ वो सब मशहूर लेखक की कहानियाँ होती थी। बात आती है टैलेंट की कि क्या इच्छापूर्ति कहानियाँ लिखने वालों में सच में कोई टैलेंट है.. मैं तो यही कहूँगी की इच्छापूर्ति कहानियाँ लिखने में कोई बुराई नहीं है। कहानियाँ आमतौर पर मनोरंजन के लिए होती हैं या फ़िर उनके ज़रिये पाठकों तक कोई संदेश या कोई अच्छी सीख पहुंचाई जाती है या उसमें कोई सामाजिक मुद्दा उठाकर लोगों को उसके प्रति जागरूक किया जाता है। अगर कोई लेखक इस तरह की कहानियाँ लिख रहा है तो मेरे विचार से ये भी एक टैलेंट ही है। हाँ मगर कहानी एक लेखक तैयार करता है और पाठक की खुशी के लिए या उनकी इच्छापूर्ति करने के लिए उसमें बदलाव कर देना मुझे सही नहीं लगता। एक लेखक को कहानी अपने हिसाब से ही लिखना चाहिए जैसा उसने सोच रखा है। और लोकप्रिय या इच्छापूर्ति कहानियाँ लिखना मुझे कोई सस्ता शॉर्टकट नहीं लगता। इस तरह की कहानियाँ लिखने में भी दिमाग खपता है और मेहनत भी लगती है। मैं प्रतिलिपि पर कुछ ऐसी भी कहानियों से दो चार हुई हूँ जिनका पहला पार्ट तक मुझसे पूरा नहीं पढ़ा गया पर रेटिंग और कॉमेंट देखकर मैं खुद हैरान थी कि आखिर किसी को ऐसी कहानी(वही जिसमें प्रेम के नाम पर प्रेम के सिवा सब कुछ होता है) कैसे पसंद आ सकती है..उन कहानियों में पहली बात तो कहानी ही नहीं थी..ऊपर से भर भर के गलतियां और grammar mistakes..संवाद लिखना तक नहीं आता बहुतों को..खैर मैं बस इतना कहना चाह रही थी कि इस तरह की कहानियों को मैं उन लोकप्रिय और इच्छापूर्ति वाली कहानियों में नहीं गिन रही हूँ जिनकी अभी तक मैंने बात की। जिन लेखकों को मैं पढ़ रही हूँ वो साहित्यिक कहानियाँ तो नहीं लिखते मगर फिर भी मैं उनकी रचनाओं को उम्दा कहूँगी अब वर्षा मैम को ही ले लीजिये 😁 साहित्यिक कहानियाँ शायद और ज़्यादा उम्दा में आ जायेंगी क्युंकि उस तरह की कहानियाँ लिखने में वक़्त भी लगता है और आत्मचिंतन बेहद ज़रूरी होता है। उन कहानियों में एक गंभीरता नज़र आती है जो लोकप्रिय कहानियों में नहीं दिखी मुझे। (लगता है कुछ ज़्यादा ही ज्ञान बघार दिया मैंने) 😂🙊 वैसे एक बात ज़रूर कहना चाहूँगी आपका स्कूल बेहतरीन था। हर हफ़्ते एक बुक देना पढ़ने के लिए👏। अगर वो सारी बुक्स कहानियाँ वाली होती थी तो मैंने हर बुक पूरी पढ़ी होती😂 उन लेखकों का ज़िक्र करने के लिए शुक्रिया। मैं कुछ अलग तरह की कहानियाँ पढ़ना चाह रही थी और ऐसेे में इन चार लेखकों को आपके लेख में जगह मिलना...मतलब साफ है कि ये सब भी शायद आपकी तरह बाकियों से अलग हटकर कुछ लिखते हैं । निर्वेद बेईमान की एक रचना मैं पढ़ रही थी हालांकि पूरा तो नहीं पढ़ा अभी पर वो अलग लगी और मुझे पसंद भी आई। आपका सफ़र साधारण होकर भी शानदार था। कोशिश करते रहिये एक दिन ज़रूर आप एक उम्दा लेखक बनेंगे। मेरी तरफ से बहुत शुभकामनाएं आपको सर 😌😊
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    श्रीतास "तोषी"
    07 सितम्बर 2023
    सबसे पहले तो अपने लेख में मेरे नाम को स्थान देने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद। जिस गति से मेरे पाठकों की संख्या बढ़ रही है, मुझे बिल्कुल नही लगा था कि मेरी किसी कहानी को कोई अपने कलेक्शन में भी रखेगा, कारण - मुझे अक्सर अपनी लेखनी की बुराई सुनने को मिल जाती है, ऐसे में साहित्य में रुचि रखने वाले किसी लेखक के लेख में अपना नाम देखकर मुझमें कितना उत्साह आया मैं बता नही सकती। मैं पूरा प्रयास करूंगी कि जो विश्वास आपने मेरी लेखनी में दिखाया है, उसे सार्थक कर सकूँ। आपका साहित्यिक सफर काफी रोचक है। मुझे काफी कुछ नया जानने को मिला इस ब्लॉग से। नानाजी की लाइब्रेरी होने और दादाजी द्वारा किताबें उपहार में मिलने के कारण मेरा रुझान साहित्य की ओर हुआ था पर काफी सारी बातें मुझे मालूम नही थीं। लोकप्रिय साहित्य और साहित्यिक साहित्य के मध्य का भेद अच्छे से समझ आया आज मुझे। आपको मेरी ओर अनन्त शुभकामनाएं सर।